समाजवाद, अहिंसा और लोककल्याण के अग्रदूत श्री श्री 1008 श्री अग्रसेन जी महाराज की 5149वीं जयंती पर विशेष

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विगत कई दशकों से बिलासपुर, बिल्हा, कोटा, अकलतरा जैसे छत्तीसगढ़ के सभी छोटे बड़े कस्बों में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को श्री श्री 1008 श्री अग्रसेनजी महाराज की जयंती धूमधाम से मनाई जाती हैं। इस वर्ष 31 अगस्त 2025 को जिलाधीश श्री संजय अग्रवाल ने बिलासपुर शहर में वृक्षारोपण एवं जल संचयन कार्यक्रम से श्री अग्रसेन जयंती समारोह का श्रीगणेश किया। रक्तदान, गौ माता सेवा, खेलकूद प्रतियोगिता जैसे पचासों कार्यक्रमो के उपरांत 22 सितंबर 2025 को समाजवाद, अहिंसा और लोककल्याण के अग्रदूत श्री श्री 1008 श्री अग्रसेन जी महाराज की 5149वीं जयंती धूमधाम से मनाई जाएगी। श्री अग्रसेन जी महाराज की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए ललित अग्रवाल ने बताया कि भारत भूमि में समय समय अनेकों महापुरुष अवतरित हुए है। महाराज अग्रसेन भारतीय सभ्यता के उन चिरस्थायी आदर्शों में से एक हैं, जिन्होंने समाज में समानता, अहिंसा और समुचित वितरण की भावना को जन्म दिया। युगाब्द से 22 वर्ष पूर्व ( ईसापूर्व 3124 ) द्वापर युग के अंतिम चरण में आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को प्रतापनगर में सूर्यवंशी भगवान श्रीराम के बेटे कुश की 34वीं पीढ़ी के वंशज क्षत्रिय राजा वल्लभसेन व माता भगवतीदेवी के घर अग्रसेनजी का जन्म हुआ था। 15 वर्ष की आयु में अपने पिता राजा वल्लभसेन के साथ पांडवों की तरफ से कौरवों से महाभारत का युद्ध करते समय 10वे दिन भीष्म पितामह के बाणों से राजा वल्लभसेन को वीरगति मिलने से अग्रसेनजी प्रतापनगर के महाराज बनाये गये थे. नागकुमारी माधवी से विवाह कर उन्होंने द्वापर युग में 7 वर्षों तक प्रतापनगर में राज किया. द्वापर से कलयुग के परिवर्तन पर जब भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर त्याग किया था, तब 22 वर्षीय महाराज श्री अग्रसेन ने वर्तमान हरियाणा के अग्रोहा में सरस्वती नदी के तट पर नए राज्य की स्थापना कर 101 वर्षों तक राज करने के उपरांत कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श करके अपने ज्येष्ठ पुत्र विभु को शासन सौंपकर तपस्या करने चले गए और वानप्रस्थ आश्रम में तपस्या के दौरान भौतिक शरीर का परित्याग किया. उन्हें व्यापार, कृषि और समानता पर आधारित व्यवस्था लागू करने हेतु याद किया जाता है. एकबार अकाल पड़ने पर वे वेश बदल कर राज्य भ्रमण के दौरान चार सदस्यों के परिवार में गये. जो भोजन करने ही वाले थे कि अतिथि को देखकर चारो ने अपनी अपनी थाली से एक अंश निकाल कर अतिथि को परोसा. इसी से प्रेरणा लेकर महाराज अग्रसेन ने ‘एक ईंट और एक रुपया’ की नीति से समाज में नवआगंतुकों को आत्मनिर्भर बनाकर सामूहिक सहयोग और सामाजिक सुरक्षा की मिसाल पेश की। उस समय समाज जाति व अस्पृश्यता विहीन था तथा एक कुल से दुसरे कुल में स्वयंवर द्वारा योग्य वर का चयन कर विवाह सम्पन्न होते थे. क्षत्रिय होते हुए भी उन्होंने यज्ञों में पशु बलि का विरोध करते हुए अहिंसा का मार्ग चुना और राज्य की समृद्धि के लिए हिंसा- रहित अग्रवंश ( वैश्य वर्ग ) खड़ा किया। महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य को 18 जनपदों (गणराज्य/राज्यांश) में विभाजित किया था और प्रत्येक गणराज्य के प्रशासनिक प्रमुख को उन्होंने अपने पुत्रवत माना था. महाराजा अग्रसेन ने अपने राज्य में लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव भी रखी थी, जहाँ प्रत्येक जनपद से एक-एक प्रतिनिधि लेकर प्रशासन का संचालन होता था. प्रत्येक जनपद के अपने अपने गुरु थे जो ऋषि थे, वही आगे चल कर अग्रकुल कहलाए और उनके गोत्र उनके ऋषियों से ही बने.

गणराज्य प्रमुख गोत्र नाम महर्षि जी का नाम

1.विभु – गर्ग गोत्र – महर्षि गर्गाचार्य
2.भीमदेव – गोयल गोत्र – महर्षि गोभिल
3.शिवजी – गोयन गोत्र – महर्षि गौतम
4.सिद्धदेव – बंसल गोत्र – महर्षि वत्स
5.बासुदेव – कंसल गोत्र – महर्षि कौशिक
6.बालकृष्ण – सिंघल गोत्र – महर्षि शांडिल्य
7.धर्मंनाम – मंगल गोत्र – महर्षि मंडव्य
8.अर्जुन – जिंदल गोत्र – महर्षि जैमिन
9.रणकृत – तुंगल गोत्र – महर्षि तांड्य
10.गुप्तनाम – ऐरन गोत्र – महर्षि और्व
11.पुष्पदेव – धारण गोत्र – महर्षि धौम्य
12.माधोसेन – मधुकुल गोत्र – महर्षि मुदगल
13.केशवदेव – बिंदल गोत्र – महर्षि वशिष्ठ
14.भुजमान – मित्तल गोत्र – महर्षि मैत्रेय
15.कंवलदेव – कुच्छल गोत्र – महर्षि कश्यप
16.गुणराज – नांगल गोत्र – महर्षि नगेन्द्र
17.वासगी – भंदल गोत्र – महर्षि भारद्वाज
18.शिवजीभान – तायल गोत्र – महर्षि तैलंग

उक्त 18 गोत्र मूल ऋषियों के नामों पर आधारित हैं, जो अग्रवाल समाज की पहचान हैं. विचारणीय प्रश्न यह भी है कि यदि महाराजा श्री अग्रसेन जी के 18 पुत्र थे. तब तो सभी अग्रवाल आपस में पितृकुल से जुड़े भाई बहन हो जायेंगे तो अग्रवाल आपस में विवाह सम्बंध कैसे कर सकते है. संभव है कि हम सब महाराजा श्री अग्रसेन जी के आदर्शो पर चलने वाले भिन्न भिन्न जनसमूह से हो. लोकतांत्रिक शासन, न्यायप्रिय नीति, आर्थिक समानता और शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सुविधाएँ हर नागरिक के लिए सुलभ कराने वाले अग्रसेनजी ने अपने समय में प्रजाहित को सर्वोपरि स्थान दिया। महाराज अग्रसेन के नेतृत्व में अग्रोहा राज्य व्यापार, सामाजिक समन्वय, धर्म, न्याय और समृद्धि का केंद्र बन गया था। महाराज अग्रसेन के नाम से देशभर में अस्पताल, विद्यालय, सामुदायिक भवन, धर्मशालाएँ संचालित हैं, जो उनके लोकहितकारी दृष्टिकोण का जीवंत उदाहरण हैं।
उनकी 5100 वीं जयंती के पावन अवसर पर 1976 में भारत सरकार द्वारा, 2016 में मालदीव द्वारा तथा 2017 में भारतीय डाक विभाग द्वारा अग्रसेन की बावली पर एक स्मारक डाक टिकिट जारी किये गये है. छत्तीसगढ़ सहित अनेक राज्य-सरकारों द्वारा उनके आदर्शो को स्वीकार कर उनके नाम पर प्रतिवर्ष रु. दो लाख से अधिक नगद पुरस्कार प्रदान किये जा रहे है. महाराज अग्रसेन न सिर्फ एक कालजयी शासक थे, बल्कि समता, उदारता व अहिंसा के ऐसे अनुकरणीय आदर्श हैं, जिनकी प्रेरणा आज भी सामाजिक उत्थान और सद्भाव की धुरी बनी हुई है। हर वर्ष हम अग्रसेन जयंती मनाते है, लेकिन अग्रकुल संस्थापक के इतिहास को अगली पीढ़ी तक नहीं पहुचा पाते है. कार्तिक अमावस्या को दीपावली,  फाल्गुन पूर्णिमा को होली, चैत्र शुक्ल तेरस को महावीर जयंती,  कार्तिक पूर्णिमा को गुरुनानक जयंती,  चैत्र शुक्ल नवमी को रामनवमी,  भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को जन्माष्टमी और आश्विन माह शुक्ल प्रतिपदा को श्री अग्रसेन जयंती इस बात के द्योतक हैं कि हमारे सभी व्रत त्यौहार तिथि आधारित हैं ना कि ग्रेगोरियन कलेंडर के दिनांक आधारित। इन्ही त्रुटियों को दूर करने हेतु देश के जानेमाने हिंदू चिंतक एवं विचारक अग्रकुल के ही सुनील गंगाराम गर्ग द्वारा संपादित व ललित हीरालाल गर्ग के बिलासपुर आवास से हिंदू दैनंदिनी न्यास द्वारा नववर्ष चैत्र प्रतिपदा युगाब्द 5127 के पावन अवसर पर बिलासपुर से विगत पांच वर्षो से लगातार हिंदू दैनंदिनी प्रकाशित कर अग्रवंश सहित हिंदु समाज को वास्तविकता से अवगत कराने हेतु विश्व में पहली बार हिंदू तिथि को अंको में लिखने की विधि सहित सरल भाषा में तिथि, व्रत, त्यौहार, ऋतु आदि एकसाथ उपलब्ध कराकर हिंदुत्व के विलुप्त होते सद्गुणों को सहेजने व नई पीढीयों को अपने वैभवशाली इतिहास से अवगत कराने हेतु उद्यम किया जा रहा है.

श्री श्री 1008 श्री महाराजा अग्रसेन जी की विशेषताए

दो युगों के दृष्टा : द्वापर के अंत से लेकर कलयुग में भी राज
जाति विहीन समाज : सूर्यवंशी होकर नागवंशी से विवाह
अहिंसा : पशुबलि/मांसाहार का त्याग कर शाकाहार अपनाया
वर्ण परिवर्तन : क्षत्रिय वर्ण को त्याग शुद्ध सात्विक वैश्य वर्ण अपनाया
समाजवाद : समाज से नवआगंतुकों को एक ईंट और एक रुपया दिलवाकर समकक्ष बनाना
धर्मार्थ कार्य : आमदनी का निश्चित हिस्सा धर्मार्थ समाज को वापस करना
समाजसेवा : उस दौर में वृक्षारोपण, कुएं, बावड़ी, धर्मशालाओ का निर्माण
गोत्र व्यवस्था : 18 पुत्रों को यज्ञ कर 18 ऋषियों के मूल गोत्र दिलवाना
सर्वाधिक न्यायपूर्ण राज : 7 वर्षों तक द्वापर युग में तथा 101 वर्षों तक कलयुग में कुल 108 वर्षों न्यायपूर्ण राज करने वाले एकमात्र शासक

उपरोक्त विशेषताओं को ध्यान रखते हुए उनके वंशज (स्टेक होल्डर) होने के नाते आज हमें जाति व्यवस्था का त्याग कर केवल गोत्र उपयोग करना ना केवल ज्यादा प्रासंगिक होगा, अपितु समग्र हिंदू समाज के उत्थान में सहायक होकर पुरुष/महिला के अनुपात की कमी को दूर कर सभी के विवाह सम्बंध में सहायक भी होगा. उनकी 5149वीं जयंती पर हिंदू समाज में व्याप्त बुराइयों का त्याग कर उपरोक्त महर्षियों के गोत्र उपनाम अपनाकर जाति विहीन समरस समाज बनाकर उनके आदर्शो को अपनाना हीं उनके प्रति सही सम्मान होगा. यदि आपके मन में जाति व्यवस्था के अस्तित्व में आने के कारण, अस्पृश्यता के कारण, हिंदुत्व के वैज्ञानिक सद्गुण व काल गणना से सम्बन्धित कोई प्रश्न हो तो निसंकोच सम्पर्क करे यथासम्भव निराकरण करने का प्रयास किया जायेगा.

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