नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शनिवार को 12वें अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य संवाद सम्मेलन में वैश्विक स्वास्थ्य सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी ने हमें कई महत्वपूर्ण सबक सिखाए हैं और हमें अगली स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए। विदेश मंत्री ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत करना, रोगी सुरक्षा बढ़ाना और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित करना हमारी प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि अगर वैश्विक स्तर पर हम और अधिक निकटता से सहयोग करेंगे, तो ये लक्ष्य आसानी से प्राप्त किए जा सकेंगे।
विदेश मंत्री ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा आज के समय में एक मौलिक अधिकार है, केवल एक विशेषाधिकार नहीं। ग्लोबल साउथ अनिश्चित आपूर्ति श्रृंखलाओं और वैश्विक अर्थव्यवस्था की अनिश्चितताओं का बंधक नहीं हो सकता। उन्होंने विश्वास जताया कि हम सभी एक मजबूत उद्देश्य, साझा अनुभव और बेहतर नेटवर्क के साथ मिलकर काम करने का संकल्प लेकर यहां से जाएंगे।
भारत की प्रमुख स्वास्थ्य पहलों की दी जानकारी
विदेश मंत्री ने भारत की स्वास्थ्य पहलों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, पर्यावरण के लिए जीवनशैली पहल (LIFE) और बाजरा जैसी पौष्टिक प्रथाओं को बढ़ावा दिया है। आयुष्मान भारत योजना को दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजना बताते हुए उन्होंने कहा कि लगभग 750 मिलियन नागरिकों को आभा आईडी मिली है, जिससे 360,000 स्वास्थ्य सुविधाओं और 570,000 स्वास्थ्य पेशेवरों तक उनकी पहुंच सुनिश्चित हुई है।
उन्होंने कहा कि यह डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की शक्ति और मोदी सरकार की सुशासन के प्रति गहरी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। विदेश मंत्री ने बताया कि 14,000 जन औषधि केंद्रों के माध्यम से आम नागरिकों के लिए आवश्यक दवाओं की लागत को कम किया गया है।
पारंपरिक चिकित्सा और आयुर्वेद को दिया बढ़ावा
विदेश मंत्री ने कहा कि परंपरा और प्रौद्योगिकी के बीच संतुलन बनाते हुए भारत ने पारंपरिक चिकित्सा और आयुर्वेद को भी बढ़ावा दिया है। कोविड के दौरान पारंपरिक चिकित्सा की उपयोगिता और प्रभावकारिता का अधिक स्पष्ट अहसास हुआ। भारत को गुजरात में डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर ऑफ ट्रेडिशनल मेडिसिन की मेजबानी करने का अवसर भी मिला है।
उन्होंने बताया कि सरकार ने प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद के लिए ‘आयुष’ नामक एक विभाग बनाया है और इस क्षेत्र में अधिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग की उम्मीद की जा रही है। हील इन इंडिया पहल के तहत भारत में विदेशी मरीजों के इलाज को आसान बनाने और चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं।
वैश्विक साझेदारी में भारत की भूमिका
विदेश मंत्री ने कहा कि वैश्विक दक्षिण ही नहीं, बल्कि वैश्विक उत्तर को भी मजबूत चिकित्सा साझेदारी की आवश्यकता है। उत्तरी अमेरिका, यूरोप, जापान और सुदूर पूर्व के देशों में स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी है। भारत इन जरूरतों को पूरा करने के लिए साझेदारी बढ़ाने पर काम कर रहा है।
उन्होंने बताया कि भारत ने गाजा में मानवीय संकट से निपटने के लिए 66.5 टन चिकित्सा आपूर्ति, सीरिया में अस्पतालों के लिए 1400 किलोग्राम कैंसर रोधी दवाओं और अफगानिस्तान में 300 टन दवाइयां भेजी हैं। इसके अलावा, काबुल में बनाए गए एक अस्पताल में विशेषज्ञों को भी भेजा गया है।
कोविड अनुभव से सीखी अहम बातें
विदेश मंत्री ने कहा कि कोविड का अनुभव भारत सहित कई देशों की राष्ट्रीय क्षमताओं को विकसित करने की याद दिलाता है। भारत ने उत्पादन को स्थानीय बनाने और क्षमताओं को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
उन्होंने बताया कि ई-आरोग्य भारती पहल के माध्यम से अफ्रीका में मेडिकल छात्रों और पैरामेडिक्स को प्रशिक्षित किया गया है। दवाओं के उत्पादन में विविधता और चिकित्सा पेशेवरों के पैमाने का विस्तार कर वैश्विक दक्षिण की चिंताओं को दूर करने की दिशा में भारत अग्रसर है।
कोविड के दौरान भारत का वैश्विक योगदान
विदेश मंत्री ने बताया कि कोविड महामारी के दौरान भारत ने वैक्सीन मैत्री पहल के तहत बड़ी संख्या में विकासशील देशों को वैक्सीन प्रदान की। यह कई विकसित देशों के विपरीत था, जिन्होंने अपनी आबादी के लिए वैक्सीन का भंडारण कर लिया था।
उन्होंने कहा कि भारतीय चिकित्सा दल हिंद महासागर क्षेत्र के कुछ छोटे देशों में दबाव की स्थिति से निपटने के लिए गए थे। भारत के निजी स्वास्थ्य उद्योग ने भी विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं और क्षमताओं को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
विदेश मंत्री ने भरोसा जताया कि भारत वैश्विक स्वास्थ्य सहयोग के माध्यम से न केवल अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को सुरक्षित करेगा, बल्कि पूरी दुनिया के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ और सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।