लखीमपुर खीरी। महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर लखीमपुर खीरी के गोला गोकर्णनाथ स्थित पौराणिक शिव मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है। ‘छोटी काशी’ के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहां स्थापित अद्भुत शिवलिंग की मान्यता पुराणों और लोक कथाओं में वर्णित है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी 22 फरवरी को यहां पहुंचे और भगवान शिव का जलाभिषेक कर प्रदेश की खुशहाली की कामना की। हरिद्वार और कछला घाट से गंगाजल लाकर भक्त यहां भगवान शिव को अर्पित करते हैं।
भगवान शिव की विचरण स्थली: पौराणिक कथा
गोला गोकर्णनाथ के इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि भगवान शिव ने वैराग्य धारण करने के बाद मृग रूप में यहां के वन क्षेत्र में भ्रमण किया था। वराह पुराण के अनुसार, जब ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र ने शिव को खोजते हुए यहां आहट की, तो भगवान शिव मृग रूप में भागने लगे। देवताओं ने उनका पीछा कर उनके सींग पकड़ लिए, जिससे सींग तीन भागों में विभाजित हो गया।
- पहला भाग भगवान विष्णु ने गोला गोकर्णनाथ में स्थापित किया, जिससे इसे ‘गोकर्णनाथ’ नाम मिला।
- दूसरा भाग ब्रह्मा जी ने बिहार के श्रृंगेश्वर में स्थापित किया।
- तीसरा भाग इंद्र ने अमरावती में स्थापित किया।
शिव पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी इस स्थल का महात्म्य विस्तार से मिलता है।
रावण और गोला गोकर्णनाथ का पौराणिक संबंध
एक अन्य लोक मान्यता के अनुसार, त्रेतायुग में रावण ने भगवान शिव को लंका ले जाने के लिए तपस्या की। भगवान शिव ने शर्त रखी कि उन्हें रास्ते में कहीं भी रखा गया तो वे वहीं स्थापित हो जाएंगे। रावण जब गोला गोकर्णनाथ पहुंचा, तो उसने शिवलिंग एक चरवाहे को थमा दिया और लघुशंका के लिए चला गया।
काफी देर बाद भी रावण के न लौटने पर चरवाहे ने शिवलिंग भूमि पर रख दिया। लौटने पर रावण ने शिवलिंग को उठाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा। क्रोध में आकर रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग को भूमि में दबा दिया। मान्यता है कि आज भी शिवलिंग पर रावण के अंगूठे का निशान मौजूद है।
शिव मंदिर का विकास और कॉरिडोर निर्माण
वर्ष 2014 में शिव सेवार्थ समिति ने भक्तों के सहयोग से तीर्थ स्थल के मध्य विशालकाय भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित कराई थी। वर्ष 2016 में आवास विकास योजना के तहत एक करोड़ 10 लाख रुपये की लागत से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। वर्तमान में इस पौराणिक स्थल को शिव मंदिर कॉरिडोर के रूप में विकसित करने की योजना चल रही है, जिससे श्रद्धालुओं को और अधिक सुविधाएं मिल सकेंगी।
जूना अखाड़ा और मंदिर का इतिहास
करीब डेढ़ सदी पहले जूना अखाड़े के नागा साधु इस पौराणिक शिव मंदिर के सर्वराकार हुआ करते थे। वे छत्र लगे हाथियों पर सवार होकर यहां आते थे। बाद में जूना अखाड़ा ने गोस्वामी समाज को मंदिर की देखरेख का दायित्व सौंपा।
हालांकि, मंदिर निर्माण कब और किसने कराया, इसके कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। पहले यह मंदिर गोल मठिया के रूप में छोटा था। वर्तमान में जनार्दन गिरि पौराणिक शिव मंदिर कमेटी के अध्यक्ष हैं और मंदिर की देखरेख कर रहे हैं।
महाशिवरात्रि के अवसर पर गोला गोकर्णनाथ का यह पौराणिक शिव मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास का प्रतीक बना हुआ है।