नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण कानून (Prevention of Corruption Act) के तहत कार्रवाई को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट किया कि हर मामले में प्रारंभिक जांच (preliminary inquiry) अनिवार्य नहीं है और आरोपी का यह निहित अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने यह टिप्पणी दी।
अदालत ने कहा कि कुछ मामलों में प्रारंभिक जांच की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन यह किसी आपराधिक मामले की शुरुआत के लिए अनिवार्य नहीं है। कोर्ट ने यह भी बताया कि प्रारंभिक जांच का उद्देश्य केवल यह पता लगाना है कि क्या सूचनाओं के आधार पर किसी संज्ञेय अपराध की पुष्टि होती है, न कि सूचना की सत्यता की पुष्टि करना।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत मामले दर्ज करने और प्रारंभिक जांच की प्रक्रिया को लेकर नई दिशा स्पष्ट हो गई है।